नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग लेकर शुरू हुआ किसान आंदोलन राजनीति, हिंसा, लाल किले का अपमान और टिकैत के आंसुओं के बाद अब अपनी पहचान बचाने की लड़ाई लड़ रहा है, किसान आंदोलन अब अपनी साख के लिए संघर्ष कर रहा है.
जहां कभी भीड़ हुआ करती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा है, इक्के दुक्के लोग घूमते फिरते दिख जाते हैं. दिल्ली में हुई हिंसा के बाद कई किसान संगठनों ने किसान आंदोलन से अपना समर्थन वापस ले लिया था. उसके बाद राकेश टिकैत ने आंसुओं से राजनीति करते हुए आंदोलन को जाति के आंदोलन में बदलने की कोशिश की. कुछ देर के लिए तो टिकैत का यह पैंतरा काम कर गया, लेकिन अब महापंचायत के मंचों पर बैठने के लिए भी लोग जुटाना मुश्किल हो रहा है.
सर पीट रहे आयोजक?
राकेश टिकैत कहते हैं कि आंदोलन फेल हुआ तो किसान फेल हो जाएगा. वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी को हराने की बात कहकर, विपक्ष के नेताओं के लिए प्रचार करके टिकैत किसान आंदोलन के नाम पर वामपंथियों और विपक्ष की मांग को आगे बढ़ा रहे हैं. किसान आंदोलन अब किसानों का न रहकर सिर्फ वामपंथियों का आंदोलन रह गया है. वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोग ही टिकैत के साथ नजर आ रहे हैं.
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर से शुरू हुई लड़ाई दिल्ली के लालकिले पर पहुंचकर उपद्रव में बदल गई, इसके बाद से ही कथित आंदोलन सिमट गया. जयपुर की फ्लॉप रैली में टिकैत ने कहा कि अबकी बार किसान दिल्ली के संसद के बाहर ही अपनी फसल बेचकर दिखाएंगे. टिकैत ने राजस्थान के किसानों को दिल्ली के बेरिकेडिंग तोड़ने का भी आह्वान किया. लेकिन यह आह्वान खाली कुर्सियों और मैदान से किया गया. क्योंकि हालात ऐसे हैं कि भीड़ नहीं जुट पा रही और रैली के आयोजक अपना सर पीट रहे हैं.
जयपुर में किसान रैली से राकेश टिकैत और राजाराम मील को काफी निराशा हुई होगी. रैली के आयोजन की मुख्य भूमिका निभाने वाले राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष और भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष राजाराम मील ने तो अब जयपुर में किसान रैली नहीं करने की बात कह दी, मील ने कहा कि इस रैली में किसानों के नहीं आने से काफी निराशा हुई.
किसानों के कंधे पर रखके बन्दूक चला रहे थे
राकेश टिकैत की राजनीतिक महत्वाकांक्षांए किसी से छुपी नहीं रही हैं. ऐसे में एक सवाल किसानों के मन में कौंध रहा था कि क्या राकेश टिकैत उनके कंधे पर रखकर अपने मतलब की बंदूक चला रहे हैं?
दिल्ली हिंसा के बाद किसानों को इस सवाल का जवाब मिल गया. उनका विश्वास और मजबूत हो गया कि आंदोलन का किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है, ये तो सिर्फ विपक्ष के इशारों पर देश को अशांत करना चाहते हैं, समाज को तोड़ना चाहते हैं.
देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ दर्जनों बैठकें और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्वास दिलाने के बाद भी राकेश टिकैत ने आंदोलन को जारी रखा. भरी ठंड में राकेश टिकैत अपना हित साधने के लिए बूढ़े और बच्चों को लेकर बैठे रहे. स्वयं के अरमानों की लौ जलती रहे, इसके लिए दर्जनों किसानों की चिता जला दी गई.
आज राकेश टिकैत से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि किसान आंदोलन के दौरान हुई मौतों का जिम्मेदार कौन है? राकेश टिकैत से पूछा जाना चाहिए कि उसके बहकावे में आकर जिन किसानों ने अपनी फसल जला दी, उसका जिम्मेदार कौन है? इस दौरान देश को हुए आर्थिक नुकसान और अंतरराष्ट्रीय दुष्प्रचार का जिम्मेदार कौन है?
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