रवि प्रकाश
बगैर किसी भूमिका के सीधी बात की जाए तो फरवरी के आरम्भ होते-होते दुनिया को अहसास हो गया था कि एक भारी संकट विश्व समुदाय को अपनी चपेट में ले रहा है और इससे बाहर निकलना तत्काल संभव नहीं है. यह संकट मानव-निर्मित है या बेलगाम और बेहिसाब दोहन से क्षुब्ध प्रकृति का प्रकोप है, इस पर अभी दुनिया भर में माथापच्ची चल रही है. इस बीच संकट सुरसा के मुँह के समान विशाल और विकराल होता जा रहा है. कोरोना वायरस की बिलकुल नयी और रहस्यमयी प्रजाति से उत्पन्न कोविड19 रोग ने एक ऐसा संकट दुनिया के सामने खड़ा कर दिया है, जिसकी भयावहता के बारे में चिकित्सा और अर्थ जगत के विद्वानों-विशेषज्ञों ने इस साल जनवरी के उत्तरार्ध में चेतावनी देनी आरम्भ कर दी थी. हर गुजरते दिन के साथ लगभग चार महीनों में इस विश्वव्यापी महामारी ने दुनिया को अस्त-व्यस्त कर दिया है. कहीं कम तो कहीं ज्यादा, कहीं धीमा तो कहीं तीव्र कोरोना के संक्रमण से आज धरती का कोई देश अछूता नहीं है.
इसके मानव-निर्मित और प्राकृतिक होने की बहस के बीच यह निर्विवाद सत्य है कि इसका उद्गम स्थल चीनी लोक गणराज्य का विकसित शहर वुहान था. चीन में वुहान, शंघाई और बीजिंग, इन तीन महानगरों में दो से तीन महीने तक के लॉकडाउन के बाद स्थितियाँ लगभग सामान्य हो चुकी हैं. तो उधर, लगभग पूरा यूरोप और अमेरिका अभी भी इस विनाशकारी प्रकोप से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश, हमारा भारत दो महीने से अधिक समय से लॉकडाउन का पालन कर रहा है और हम चिंताजनक अवस्था से अभी बाहर नहीं निकल पाए हैं. इस विपदा ने जहां दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को झकझोर दिया है, अनेक अर्थव्यवस्थाओं की जडें हिलने लगीं हैं. भारत की सकल घरेलू उत्पाद दर काफी नीचे आ गयी है. संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति इस वैश्विक आपदा के लिए सीधे तौर पर चीन को उत्तरदायी ठहरा रहे हैं. ऐसी परिस्थिति में विश्व का मार्गदर्शन करने वाला विश्व स्वास्थ्य संगठन संदेह के घेरे में है और संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस पर गंभीर आर्थिक आक्रमण कर दिया है. इसी कड़ी में उसके निशाने पर चीन भी है और कूटनीतिक बयानों के बीच सं.रा.अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक वक्तव्यों के आक्रामक आदान-प्रदान के पार्श्व में सामरिक तैयारियाँ भी चल रही हैं.
कुल मिलाकर कोरोना के कहर ने दुनिया के सामने आर्थिक हितों की टकराहट को तेज कर दिया है. ऐसे माहौल में एक उभरती हुए वैश्विक शक्ति और विकासशील अर्थव्यवस्था के नाते भारत के सामने कोरोना के संकट से लड़ने के साथ-साथ अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने और परम्परागत रूप से पश्चिम और उत्तर में दो-दो विद्वेषपूर्ण पड़ोसियों के षड्यंत्रों से निपटने की चुनौती है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे सामने कोरोना की महामारी से निपटने के अलावा अभी दो तरह की चुनौतियाँ हैं – एक लॉकडाउन के मद्देनज़र आर्थिक मोर्चे पर और दूसरी उत्तर और पश्चिम में गैर भरोसेमंद पड़ोसियों के मद्देनज़र सामरिक मोर्चे पर. कोरोना वायरस और कोविड19 के कारण आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियाँ अधिक गंभीर हो गयी हैं और हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री, के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए ठोस एवं साहसिक कदमों के प्रतिफल मिल रहे थे, उनपर अचानक-से लगाम लग गई है. इस अवरोध को हटाने और आर्थिक गतिविधियों को वापस पटरी पर लाने, उसकी रफ़्तार पहले की अपेक्षा अधिक तेज करने तथा कोविड19 के कारण करोड़ों की संख्या में गरीबों और श्रमिकों के सामने उत्पन्न संकट को दूर करना आवश्यक होगा.
भारत के आर्थिक दृष्टिकोणों को अगर हम मोटे तौर पर तीन कालखंडों – 1950 से 1990, 1991 से 2013 और 2014 एवं उससे आगे – में विभाजित करें तो हम पाते हैं कि 2014 से पहले लगभग 35 वर्षों तक और विशेषकर 1991 से 2013 तक केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं होने के कारण अनेक दूरगामी परिणाम वाले क्षेत्रों में नीति-निर्धारण की कमजोरी हावी रही थी. इसके फलस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद के लगभग तीन दशकों में विकास और प्रगति के जो भी कार्य हुए थे, उनका प्रभाव देश और समाज के सर्वांगीण हित में गायब होता गया और अदृश्य रूप से जो परिस्थितियाँ विकसित होने लगीं उनका प्रत्यक्ष रूप आज हमारे सामने दिखाई दे रहा है कि एक ओर चीन की शह पर नेपाल भी सीमा विवाद खड़ा कर रहा है, तो दूसरी ओर करोड़ों गरीबों और श्रमिकों की दुर्दशा सामने आ रही है, जो अन्यथा ठीक-ठाक लग रहे थे. सामरिक स्थिति यह थी कि विगत तीन-चार दशकों में चीन भारत से सटे अपनी दक्षिणी सीमा पर सारी अवसंरचनाओं का विकास करता रहा, लेकिन हमारी ओर से शान्ति के नाम पर उसकी गंभीरता की उपेक्षा की जाती रही. इस परिप्रेक्ष्य में हमारे सामने सुकून और भरोसे की स्थिति इसलिए बनती है क्योंकि आज केंद्र में पिछले छह वर्षों से सहयोगी दलों के गठबंधन के बावजूद एक पूर्ण बहुमत की सरकार है और देश हित में साहस-भरे कठोर फैसले करने वाला सरकार का मुखिया है. यह इन साहस-भरे कदमों का ही परिणाम है कि भारत ने अपनी सार्वभौमिक शक्ति का परिचय देते हुए अपनी उत्तरी सीमाओं पर सुदृढ़ अवसंरचनाओं का विकास आरम्भ किया है, जिसको लेकर चीन अपनी नाराजगी कभी सीमा पर नोक-झोंक के माध्यम से तो कभी परोक्ष रूप से नेपाल के माध्यम से जाहिर कर रहा है. इस सामरिक चुनौती का सामना करने के लिए भी हमारे लिए अपनी आर्थिक चुनौतियों को दूर करना एक अनिवार्य शर्त है.
इस सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के पाँचवे चरण में आर्थिक-व्यावसायिक-औद्योगिक गतिविधियों को क्रमिक रूप से खोलते हुए कोविड-19 के मुकाबले लॉकडाउन की शर्तों का पालन करने की सही नीति अपनाई है. प्रधानमन्त्री ने कुछ दिनों पहले “आत्मनिर्भरता” और “लोकल के लिए वोकल” होने का सन्देश दिया था. इन दोनों संदेशों के निहितार्थ बड़े गहरे हैं. हमें आम जनता के बीच इन निहितार्थों को न केवल पहुंचाने, बल्कि देशवासियों के मन में इन्हें बिठाने की भी ज़रुरत है. प्रधानमंत्री द्वारा संकल्पित कौशल विकास योजना का बड़ा लाभ देश को मिलने लगा है. इस बीच प्रवासी श्रमिकों की घरवापसी के कारण रोजगार के नए अवसर और संसाधन जुटाने की ज़रुरत हमारे सामने है. ऐसे में आर्थिक चुनौतियों के समाधान के लिए इस विषम परिस्थिति में भी बहुत सारी सकारात्मक परिस्थितियाँ हैं जो हमारा संबल बन सकतीं हैं. बड़ी संख्या में लोग गाँवों में वापस लौट रहे हैं. तो ग्रामीण कुटीर उद्योगों और कारोबारों के साथ-साथ कृषि उत्पादन को नया आयाम देते हुए हम इन करोड़ों श्रमिकों को लाभकारी कृषिक रोजगार और ग्रामीण उत्पादन से जोड़ सकते हैं. कहा जाता है कि आर्थिक ढाँचा ही मूल ढांचा होता है जो अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक-आर्थिक ढांचे को आकार प्रदान करता है. इसलिए जाहिर है, जब देश के गाँव विकसित होंगे, ग्राम्य जीवन उन्नत होगा, कृषिक रोजगार और आय में वृद्धि होगी तथा ग्रामीण कुटीर उद्योगों का जाल बिछेगा तो स्वभावतः लोगों की आय के साथ-साथ देश की समग्र आर्थिक शक्ति में भी इजाफा होगा.
साथ ही किसी भी देश के लिये विकास का इंजन उसके उद्योग-धंधे अर्थात् विनिर्माण क्षेत्र होता है. आज भारत विनिर्माण के क्षेत्र में मेक इन इंडिया जैसे इनिशिएटिव के माध्यम से बूमिंग की स्थिति प्राप्त कर रहा है, भले ही कोविड-19 के कारण लॉकडाउन की स्थिति में अभी हालत थोड़े डरावने क्यों न लग रहे हों. इस परिप्रेक्ष्य में हमें चीन के प्रति यूरोप और अमेरिका में पैदा हो रहे आक्रोश का लाभ उठाने की कोशिश करनी चाहिए. चीन से बाहर निकलने वाले उद्योगों को भारत में आमंत्रित करने के लिए अपने श्रमिकों के हितों को सुरक्षित करते हुए, आने वाली कंपनियों के लिए अनुकूल वातावरण और भरोसे का माहौल बनाना होगा. इससे विनिर्माण के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इस क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की मांग हम देश में पहले से चल रहे कौशल विकास योजनाओं से करने की स्थिति में हैं. इस तरह उत्पादन में जो उछाल आएगा, उसके लिए हमें नए बाज़ार की ज़रुरत होगी, निर्यात में और आगे बढ़ना होगा. अधिकांश देशों की समस्या बाज़ार की अनुपलब्धता है, जबकि भारत में एक बहुत बड़ा मध्य वर्ग इन वस्तुओं के बाज़ार के रूप में भारत के आर्थिक विकास हेतु आधार प्रदान कर रहा है. गाँवों में आय के स्रोत बढ़ने से यह आधार और भी विशाल हो जाएगा. भारत और चीन के बीच व्यापार पर ही गौर करें तो हम कह सकते हैं कि अभी हम चीन से जितना आयात कर रहे हैं, अगर उसकी पूर्ति के लिए हम अपने देश में उत्पादन करने लगें तो अपेक्षित बाज़ार हमें अपने ही देश में उपलब्ध हो जाएगा. इस तरह प्रधानमंत्री की “मेक इन इंडिया” के बाद “वोकल फॉर लोकल” के रास्ते ‘कंज्यूम इन इंडिया’ को अपना कर “आत्मनिर्भर भारत” की योजना साकार कर सकते हैं. दूसरी ओर निर्यात के नए बाज़ार का दोहन करके हम अपनी वैश्विक पहचान को और मजबूत कर सकते है, विदेशी मुद्रा का भण्डार भी बढ़ा सकते हैं.
भारत ने कोविड-19 के सन्दर्भ में सं.रा.अमेरिका जैसे धनी और शक्तिशाली देश समेत दुनिया के अनेक देशों को जो चिकित्सीय और औषधीय मदद की है, उससे भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है. चीन की शैतानियों के प्रत्युत्तर में भारत ने जिस अभूतपूर्व संयमपूर्ण दृढ़ता और संकल्प-शक्ति का परिचय दिया है, वह पड़ोसियों के लिए एक साफ़ सन्देश है और इसका असर होना अवश्यम्भावी है. विश्व के बदलते कूटनीतिक समीकरणों के बीच भारत को अपनी कूटनीतिक परीक्षा देनी है, इस परीक्षा में पास होना है. नए विश्व के उभरते नए समीकरणों और रिश्तों में अपने हितों की हिफाजत के लिए हस्तक्षेप करना है. अभी तक की स्थितियां हमें भरोसा दिलातीं हैं कि भारत सरकार के कदम सही दिशा में बढ़ रहे हैं. आर्थिक शक्ति ही सामरिक शक्ति की भी बुनियाद होती है. इस प्रकार अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करते हुए देशवासियों की रक्षा और अपनी सीमाओं की अस्मिता अक्षुण रखने के लिए उपयुक्त और पर्याप्त आयुधों पर हमें आगे बढ़ने की ज़रुरत है.
बेशक चुनौतियां गंभीर हैं, कोरोना के सन्दर्भ में मौजूदा हालात अप्रत्याशित हैं. तो यह भी सच है कि भारत का गौरव वापस पाने और आत्मनिर्भर भारत बनाने की योजना महज कल्पना नहीं, बल्कि तार्किक व संगत परिस्थितियों पर आधारित सुविचारित संकल्पना है. जिस पर विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं, पर पहले से चल रहे कार्यों को धैर्य के साथ आगे बढ़ाकर हम इन चुनौतियों को दूर कर सकते हैं. देश में एक मजबूत सरकार, साहसिक कुशल नेतृत्व से हम भरोसा कर सकते है कि ऐसा ही होगा.
(लेखक भारत विकास परिषद, मुंबई प्रांत की कार्यकारिणी के सदस्य हैं)
Comments
Post a Comment