प्रशांत पोळ
योगी जी की मृत्यु का समाचार मन को विषण्ण करने वाला है. उनके जैसा, ऊंचा पूरा, हट्टा-कट्टा, ज़िंदादिल व्यक्ति कोरोना का ग्रास बनता हैं, इस पर विश्वास ही नहीं होता.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाकौशल प्रांत के सेवा प्रमुख, योगेंद्र सिंह जी को हम सब ‘योगी जी’ नाम से ही जानते थे. उनका पूरा नाम शायद ही किसी को पता होगा. अत्यंत मिलनसार व्यक्तित्व. उनके संपर्क में जो भी आता था, उन्हीं का हो जाता था. २०१४ के लोकसभा चुनाव में, मेरे पास जबलपुर लोकसभा क्षेत्र के समन्वय का दायित्व था, और मेरे सहयोगी थे, योगी जी. चुनाव के वे दो- तीन महीने, मेरे लिए अत्यंत आनंददायक थे. हम दोनों में बहुत अच्छी समझ थी. हम दोनों ने साथ में खूब प्रवास किया. अनेक विषयों पर हमारी खूब बातें हुआ करती थीं. और उन्हीं में से, मुझे योगी जी का विस्तृत परिचय होता गया.
योगी जी अविवाहित थे. समाज के लिए कुछ करने की ललक युवावस्था से ही थी. प्रारंभ में भाजपा का काम किया. मन लगाकर किया. किन्तु राजनीति उन्हें रास नहीं आई. दरम्यान वे संघ के संपर्क में आए, और संघ के ही हो गए. वे मुझे कहते थे, राजनीति स्वार्थ में लिपटी हुई होती है. इसलिए राजनीति में काम करते समय मन को सही अर्थों में सुख या शांति नहीं मिलती थी. अब संघ का काम करते हुए एक असीम सुख मिलता है. यहाँ कोई स्वार्थ नहीं. कोई स्पर्धा नहीं. ये काम करने का मजा कुछ और ही हैं.
योगी जी केंद्र सरकार की सेवा में थे. वे जिस विभाग में काम करते थे, वहां स्थानांतरण होना यह सर्वसामान्य था. काम करने वाले व्यक्ति को, उसकी नौकरी के पूरे कालखंड में, एक या दो बार ‘हार्ड स्टेशन’ जाना अनिवार्य होता था. लोग इससे बचना चाहते थे. इसलिए आसपास के ‘हार्ड स्टेशन’ मांगते थे. किन्तु योगी जी कुछ अलग मिट्टी के बने थे. जब उनकी बारी आई, तो उन्होंने मांगा – पोर्ट ब्लेयर अर्थात् अंडमान – निकोबार. सहयोगियों ने समझाया, ऐसी गलती मत करना. इतने दूर कोई जाना नहीं चाहता. किन्तु योगी जी की कल्पना स्पष्ट थी. उन्हें ‘वास्तविक हार्ड स्टेशन’ पर जाकर संघ का काम करना था. और उन्होंने किया भी. वे तीन वर्ष अंडमान में रहे. पहले कुछ महीने तो वहां के संघ कार्यालय में ही उनका निवास था. उन्होंने वहां कार्यालयीन काम तो प्रामाणिकता से किया ही, किन्तु बचे हुए समय में संघ कार्य भी किया. अत्यंत समर्पित भाव से किया. अनेक संपर्क जोड़े. वहां का कार्यकाल पूर्ण करके, जबलपुर आने के बाद भी उनका अंडमान में जीवंत संपर्क था. उन दिनों मे, अंडमान में संघ से संबधित किसी से भी भेट होती थी, तो योगी जी की बात निकलती ही थी.
जब हम लोकसभा के लिए साथ में काम कर रहे थे, तब उनके कार्यकाल को दो वर्ष बचे थे. तभी उन्होंने निर्णय लिया था, कि सेवानिवृत्ति के पश्चात, संघ से संबंधित पूर्णकालिक कार्य ही करूंगा. और उन्होंने किया भी. सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय संघ को दिया. उनको सेवा विभाग का दायित्व मिला, जो उनके स्वभाव के अनुकूल भी था. इसीलिए वे बड़ी प्रसन्नता के साथ वहां काम करते थे. महाकौशल प्रांत के सेवा विभाग के प्रमुख, इस नाते उनका पूरे प्रांत में प्रवास भी होता था. उनका मुख्यालय सागर था, तो सागर में भी उन्होंने कई संपर्क जोड़े थे.
पिछले दो वर्षों से संघ की बैठकों में ही उनसे मिलना होता था. दो वर्ष पहले, मेरे घर में ‘महालक्ष्मी पूजन’ के दिन उनका आना, यह अपवाद था. लेकिन जब भी मिलते थे, तो बड़ी गर्मजोशी से मिलना होता था. ऐसा लगता था, की हम नियमित मिलते रहते हैं.
अभी कोरोना काल में, संघ के सेवा विभाग ने भरपूर काम किया. योगी जी, इस पूरे कालखंड में अत्यंत व्यस्त थे. अपने महाकौशल प्रांत में सेवा के अनेक कार्य हुए. इन कामों के लिए, प्रतिबंध के बावजूद, योगी जी को प्रवास भी करना पड़ता था. और इसी में उन्हे कोरोना ने जकड़ लिया…. उन्होंने इस महामारी से भी भरपूर संघर्ष किया. अंत में, जब उनकी हालत बिगड़ती गई, तो उन्हें ‘प्लाज्मा ट्रीटमेंट’ के लिए भोपाल ले जाने का निर्णय हुआ. किन्तु, वे भोपाल न पहुंच सके. भोपाल से २५ किलोमीटर पहले ही, मृत्यु से उन्होंने हार मानी.
उनका जाना यह मेरे लिए वैयक्तिक हानि तो है ही, किन्तु संघ के लिए, समाज के लिए अपूरणीय क्षति हैं. एक मजबूत व्यक्तित्व, एक समर्पित स्वयंसेवक, एक ज़िंदादिल मिलनसार व्यक्ति, कार्यमग्न रहते हुए हमारे बीच से चला गया…!
उन्हें विनम्र श्रध्दासुमन…!
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